अधिनियम की धारा 138 के तहत किए गए अपराध के लिए मुकदमा दाखिल करने हेतु क्षेत्राधिकार से संबंधित मुद्दों को स्पष्ट करने पर |
हाल ही में संपन्न संसद के शीतकालीन सत्र में परक्राम्य लिखत (हुंडी, चेक के प्रपत्र) (संशोधन) विधेयक, 2015 संसद द्वारा पारित किया गया था। परक्राम्य लिखत (संशोधन) अधिनियम, 2015 को राष्ट्रपति की स्वीकृति 26 दिसंबर, 2015 को प्राप्त हुई थी। इसे 29 दिसंबर, 2015 को भारत के राजपत्र, असाधारण में प्रकाशित किया गया है। यह माना जाएगा कि परक्राम्य लिखत (संशोधन) अधिनियम, 2015 के प्रावधान जून, 2015 के 15वें दिन से ही प्रभावी हो चुके हैं, जिस दिन परक्राम्य लिखत (संशोधन) अध्यादेश, 2015 जारी किया गया था, ताकि परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 में और संशोधन करना संभव हो सके। परक्राम्य लिखत (संशोधन) अधिनियम, 2015 में परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 138 के तहत किए गए अपराध के लिए मुकदमा दाखिल करने हेतु क्षेत्राधिकार से संबंधित मुद्दों को स्पष्ट करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। परक्राम्य लिखत (संशोधन) अधिनियम, 2015 में केवल उसी अदालत में मुकदमों को दाखिल करने की सुविधा का उल्लेख किया गया है, जिसके स्थानीय क्षेत्राधिकार के भीतर प्राप्तकर्ता (पेयी) की वह बैंक शाखा अवस्थित है जहां पेयी अपने खाते के जरिए भुगतान के लिए चेक जमा करता है। वाहक (बेयरर) चेकों के मामले में यह लागू नहीं होगा, जिन्हें अदाकर्ता बैंक की शाखा में जमा कराया जाता है। इस तरह के मामलों में संबंधित बैंक की शाखा से वास्ता रखने वाली स्थानीय अदालत को क्षेत्राधिकार प्राप्त होगा। परक्राम्य लिखत (संशोधन) अधिनियम, 2015 में परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 138 के तहत किसी मामले की सुनवाई के लिए किसी अदालत के क्षेत्राधिकार का निर्धारण करने की नई योजना के पूर्वव्यापी सत्यापन का उल्लेख किया गया है। परक्राम्य लिखत (संशोधन) अधिनियम, 2015 में समान हुंडी कर्ता या चेक लिखने वाले (ड्रॉअर) के खिलाफ दर्ज किए गए मामलों का केंद्रीकरण किए जाने का भी प्रावधान है। |

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