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पहली बार निर्यात आंकड़ा पंहुचा 10000 हजार करोड़ के पार –पढ़े कारपेट कोम्पक्ट का नया अंक ;

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1 Jan 2016

दम तोड़ रहा सीकरी का मुगलकालीन दरी उद्योग

एक ऐसी नगरी, जहां महाभारत काल के संदर्भ छिपे हों, जो जैनियों की उपासना स्थली रही हो, जिसे मुगल शासक अकबर ने अपनी राजधानी बनाया हो और जहां शेख सलीम चिश्ती जैसे सूफी संत की मजार हो, वह आज तक ठीक ढंग से बस ही नहीं पाई। यह दुर्भाग्य ही है कि अंग्रेजों के जमाने में दरी बनाने का जो कारोबार यहां की व्यावसायिक पहचान बना, आजादी के बाद वह भी दम तोड़ता जा रहा है। इस दुर्भाग्य के पीछे अन्य कारणों के अतिरिक्त यहां पानी की कमी भी एक प्रमुख कारण है। हालांकि यह नगरी अरावली पहाड़ियों की शृंखला के बीच विशाल झील के किनारे स्थित थी, लेकिन मानवीय हस्तक्षेप के चलते यह झील अब विलुप्त हो चुकी है। सूत की दरी फर्श का उद्योग 70 के दशक के बाद से न के बराबर रह गया है। तब से चिंदी दरी चलन में आई। इन चार दशकों में सीकरी व आसपास के ग्रामीण क्षेत्र में यह कुटीर उद्योग के रूप में फैल गया। आज इससे लगभग 10 हजार परिवार जुड़े हुए हैं। लेकिन क्षेत्र के बुनकरों को सरकारी स्तर पर कोई सुविधाएं नहीं मिलती है। क्रेडिट कार्ड, हेल्थ बीमा, बुनाई, प्रशिक्षण आदि की सुविधाएं नहीं हैं।

फैसिलिटी सेंटर हो तो बात बनें
हैंडलूम प्रोडक्शन कोआपरेटिव सोसायटी के अध्यक्ष हाजी बदरुद्दीन कुरैशी का कहना है कि सीकरी के दरी उद्योग के विकास के लिए कॉमन फैसिलिटी सेंटर जरूरी है। इसमें सूत, चिन्दी, ताना आदि की मशीनाें के साथ वाटर ट्रीटमेंट प्लांट की सुविधा हो। वस्त्र मंत्रालय की ओर से संचालित संस्था आकाश डिफेंस के लिए सीकरी से माल खरीदे। केंद्र व प्रदेश सरकार द्वारा चलायी जाने वाली बुनकर हितों की योजनाआें का लाभ मिले। क्षेत्र के प्रमुख दरी व्यवसायी राजमल अग्रवाल का कहना है कि क्रेडिट कार्य योजना, सोसाइटी द्वारा निर्यात पैकेज बनाना, सीकरी के उत्पादन के निर्यात के लिए एचईपीसी चेन्नई में स्टाल उपलब्ध कराना आदि सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं।

सात अगस्त ही क्यों?
आगरा। स्वदेशी उद्योग और विशेष रूप से हथकरघा बुनकरों को प्रोत्साहित करने के लिए सात अगस्त 1905 को चलाए गए स्वदेशी आंदोलन को सम्मान देते हुए केंद्र सरकार ने हर साल सात अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में मनाने की घोषण की है। 
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