काले धन को देश में वापस लाने के
प्रयास भले ही न दिख रहे हों, लेकिन काले धन के धनकुबेर हरकत में आ गए हैं। विदेश का काला धन वो
खुद ही देश में ला रहे हैं, लेकिन गैर कानूनी तरीके से।
टीओआई में छपी एक खबर के मुताबिक, डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस (डीआरआई) ने ऐसे ही एक रैकेट का पर्दाफाश किया है, जो विदेशों से ब्लैक मनी को बड़ी होशियारी से व्हाइट मनी में बदलकर देश में ला रहा था। यह मामला है 2700 करोड़ रुपयों का।
डीआरआई को जानकारी मिली कि सिर्फ 10 महीनों में ही करीब 2700 करोड़ रुपए के हाथों से बने कारपेट का निर्यात किया गया है। ये कारपेट 500 से अधिक कंटेनरों में भरकर दिल्ली के पटपड़गंज और तुगलकाबाद से दुबई और मलेशिया भेजे गए हैं।
डीआरआई को जब इस पर शक हुआ तो इस पर छापा मारा गया। छापा मारने पर जो सच सामने आया उसने सभी को चौंका दिया। कंटेनरों में हाथों से बने महंगे कारपेट नहीं, बल्कि रजाई के सस्ते कवर थे।
टीओआई में छपी एक खबर के मुताबिक, डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस (डीआरआई) ने ऐसे ही एक रैकेट का पर्दाफाश किया है, जो विदेशों से ब्लैक मनी को बड़ी होशियारी से व्हाइट मनी में बदलकर देश में ला रहा था। यह मामला है 2700 करोड़ रुपयों का।
डीआरआई को जानकारी मिली कि सिर्फ 10 महीनों में ही करीब 2700 करोड़ रुपए के हाथों से बने कारपेट का निर्यात किया गया है। ये कारपेट 500 से अधिक कंटेनरों में भरकर दिल्ली के पटपड़गंज और तुगलकाबाद से दुबई और मलेशिया भेजे गए हैं।
डीआरआई को जब इस पर शक हुआ तो इस पर छापा मारा गया। छापा मारने पर जो सच सामने आया उसने सभी को चौंका दिया। कंटेनरों में हाथों से बने महंगे कारपेट नहीं, बल्कि रजाई के सस्ते कवर थे।
निर्यात के डेटा से ठनका माथा
यही नहीं, दुबई और मलेशिया में इतने बड़े
पैमाने पर भारत के हाथों से बने कारपेट की मांग भी नहीं होती है। अब तक के डेटा के
अनुसार पिछले 5 सालों में 4000-5000 करोड़ रुपए का कुल निर्यात हुआ है।
भारत से हाथों की बनी चीजों की सबसे अधिक मांग यूरोप और अमेरिका में है, जो करीब 60 फीसदी है। वहीं अगर दुबई की बात करें तो भारत दुबई को हाथों से बनी चीजें निर्यात करने वाले टॉप 20 देशों में भी नहीं आता है।
डीआरआई ने इन सभी तथ्यों के आधार पर पिछले साल अक्टूबर में 50 कंटेनरों पर छापा मारा। जानकारी के अनुसार उसमें हाथ से बने मंहगे कारपेट थे। जैसे ही कंटेनरों को खोला गया तो उसमें से सस्ती रजाई के कवर निकले।
भारत से हाथों की बनी चीजों की सबसे अधिक मांग यूरोप और अमेरिका में है, जो करीब 60 फीसदी है। वहीं अगर दुबई की बात करें तो भारत दुबई को हाथों से बनी चीजें निर्यात करने वाले टॉप 20 देशों में भी नहीं आता है।
डीआरआई ने इन सभी तथ्यों के आधार पर पिछले साल अक्टूबर में 50 कंटेनरों पर छापा मारा। जानकारी के अनुसार उसमें हाथ से बने मंहगे कारपेट थे। जैसे ही कंटेनरों को खोला गया तो उसमें से सस्ती रजाई के कवर निकले।
यूं बनाते थे ब्लैक मनी को व्हाइट
ब्लैक मनी को व्हाइट बनाने का जो
तरीका अपनाया जा रहा था, वह भी बहुत ही होशियारी का था। भारत से 160 रुपए कीमत के रजाई के कवर 7,500 रुपए के कारपेट बताकर विदेश भेजे
जाते थे।
इस तरह सस्ते सामान को महंगी कीमत में बाहर बेचकर अपनी काली कमाई को सफेद किया जाता था। इस तरह से कंपनियां दोहरा फायदा कमा रही थीं। एक तो ब्लैक मनी को व्हाइट कर रही थीं और दूसरा निर्यात के नाम पर इंसेटिव भी ले रही थीं।
डीआरआई का मानना है कि इसमें कस्टम के कुछ अधिकारी भी मिले हुए हैं, क्योंकि बिना उनकी मिली भगत के इतने बड़े पैमाने पर धांधली करना बहुत ही मुश्किल है।
इस तरह सस्ते सामान को महंगी कीमत में बाहर बेचकर अपनी काली कमाई को सफेद किया जाता था। इस तरह से कंपनियां दोहरा फायदा कमा रही थीं। एक तो ब्लैक मनी को व्हाइट कर रही थीं और दूसरा निर्यात के नाम पर इंसेटिव भी ले रही थीं।
डीआरआई का मानना है कि इसमें कस्टम के कुछ अधिकारी भी मिले हुए हैं, क्योंकि बिना उनकी मिली भगत के इतने बड़े पैमाने पर धांधली करना बहुत ही मुश्किल है।

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